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बुद्ध की भूमि केवल आंतरिक चेतना के स्तरों में से एक है, और स्वर्गों ब्रह्माण्ड का एक छोटा सा हिस्सा है। और यदि हम सही तरीके से अभ्यास नहीं करते हैं, यदि हम नहीं जानते कि कैसे करना है, तो हम उन्हें कभी नहीं जान पाएंगे, या कम से कम, हम उन्हें मरने तक नहीं जान पाएंगे। और फिर, यह जरूरी नहीं है कि हमारे मरने के बाद, हम सुखद क्षणों को जान पाएं। हो सकता है कि हम अस्तित्व के निचले स्तर पर चले जाएं, और इस संसार में जी रहे हैं उसके अपेक्षा वह हमें और भी अधिक पीड़ा का सामना करना पड़े। इसलिए, यह बेहतर है कि जब तक हमारे पास भौतिक जीवन है और हमारे पास कोइ विकल्प हैं, हम पहले विभिन्न ग्रहों, अस्तित्व के विभिन्न स्तरों पर जा सकते हैं, और जब हम इस दुनिया से प्रस्थान करेंगे, उनके बाद के जीवन के लिए अपना घर चुन सकते हैं। तब हमें पता चलेगा कि हम कहां जा रहे हैं। क्योंकि हम परमेश्वर के पुत्र और पुत्रियाँ हैं; हम बुद्ध के शिष्यों हैं; हम महान प्राणीओं हैं। हमें किसी पशु की तरह घसीटकर नहीं ले जाये जाने चाहिए कि हमारे भाग्य पर कोई नियंत्रण न हो, कि इस बारे में कुछ कह सकें कि हम कहां जा रहे हैं और इस दुनिया से जाने के बाद हम क्या करें। यह वैसे ही बुरी बात है कि हम अपनी उत्पत्ति और भविष्य के बारे में कोई ज्ञान के बिना ही इस संसार में जन्म लेते हैं। लेकिन जब तक हम यहां हैं, हमारे पास एक विकल्प है, हमारे पास मौका है अपना भविष्य बनाने का। क्योंकि यदि हम जीवन और मृत्यु की सीमा से छुट नहीं पाते, तो भले ही हम पुण्यवान हों और त्रिरत्नों को अर्पण करते हों, हम पवित्र स्थानों की तीर्थयात्रा करते हों, या हम पवित्र पूर्व मास्टरों के ग्रंथों का पाठ करते हों, फिर भी हम बुद्धों, संतों का शाश्वत जीवन प्राप्त नहीं कर सकते। बौद्ध सूत्रों में ऐसे लोगों की अनेक कहानियाँ हैं, जिन्होंने जीवित बुद्धों को भी भेंट चढ़ाई, पर मुक्ति पाने की इच्छा के बीना। इसलिए, वे ऐसी भेंटो का केवल भौतिक लाभ बहुत, बहुत, बहुत जन्मों तक प्राप्त कर सकेंगे। इसका मतलब यह है कि उन्हें मुक्ति पाने का वास्तविक तरीका मिलने में कई हजार वर्ष लगेंगे। क्योंकि हम जो भी करेंगे, उसका प्रतिफल तो हमें मिलेगा ही। यदि हम भौतिक अर्पण करेंगे, तो हमें भौतिक बदला मिलेगा। इसलिए, यदि हम आध्यात्मिक बदला चाहते हैं, तो हमें आध्यात्मिक तरीके से अभ्यास करना होगा, जो गैर-शारीरिक, गैर-भौतिक है। इसलिए, जादुई शक्ति भी हमें केवल जादुई भूमि तक ही पहुंचा सकती है, बुद्ध की भूमि तक नहीं, यदि हम वहां कभी पहुंच भी जाएं। और ब्रह्मांड में, अस्तित्व के प्रथम स्तर तक पहुंचने के लिए, यदि हमें त्वरित रास्ता नहीं पता हो तो हमें पहले से ही बहुत कठिन परिश्रम करना होगा। उदाहरण के लिए, यदि जीवित रहते हुए हमारे पास इस संसार में कोई जादुई शक्ति है, तो मरने पर वह शक्ति समाप्त हो जाती है। और उच्च-स्तरीय अभ्यासियों के अनुसार, जादुई शक्तियां और अन्य मानसिक क्षमताएं चेतना के प्रथम स्तर से संबंधित हैं - अर्थात, सूक्ष्म जगत से। और यहां तक कि सूक्ष्म जगत में भी, हमारे कई-कई अलग-अलग स्तर हैं, सैकड़ों से भी अधिक। स्वर्ग है; नरक है; दुःख है; सूक्ष्म अस्तित्व में विभिन्न स्तरों में आनन्द है। सभी लोग, मुक्ति विधि का अभ्यास किए बिना मरने के बाद, तदनुसार सूक्ष्म जगत में जाएंगे, लेकिन विभिन्न स्तरों पर। यह जादू की दुनिया है। जब हम वहां पहुंचते हैं तो सब कुछ जादू से होता है। जब शाक्यमुनि बुद्ध जीवित थे, तो उनके शिष्य ने जादुई शक्तियों का उपयोग कीया ब्रह्मांड को देखने के लिए इधर-उधर दौड़ने के लिए। लेकिन वह जो कुछ (देख) सकता था वह सूक्ष्म जगत में बहुत ऊंचे स्तर पर नहीं था। क्योंकि यह भी जादुई क्षेत्र से संबंधित है, जिसे सूक्ष्म प्रक्षेपण कहा जाता है जिसके द्वारा हम इस भौतिक शरीर को पीछे छोड़ सकते हैं और अन्य हर शरीर को अपने साथ ले सकते हैं और सूक्ष्म दुनिया में जा सकते हैं। हमारे अलग-अलग शरीरों हैं। यही कारण है कि जो लोग मर जाते हैं, भले ही वे किसी प्रकार से स्वर्ग पहुंच जाते हैं, लेकिन वे मुक्त हुए नहीं है, और फिर देर-सवेर अपने कर्मों या स्वर्ग के निर्णय के अनुसार उन्हें एक भिन्न रूप में भौतिक संसार में लौटना पड़ता है। सूक्ष्म प्रक्षेपण उन लोगों के समान है जो अस्थायी रूप से मरकर स्वर्ग जाते हैं, या जो हमेश के लिए मरकर सूक्ष्म स्वर्ग जाते हैं। लेकिन फिर भी, भले ही यह केवल सूक्ष्म जगत ही क्यों न हो, यह इतना सुंदर है कि वहां पहुंचने वाला कोई भी व्यक्ति इस दुनिया में वापस आना नहीं चाहता। आपने अमेरिका में डॉक्टरों द्वारा किए गए क्लिनिकल संशोधन की कई कहानियाँ पढ़ी होंगी, और वे उन लोगों की कहानियाँ बताते हैं जो कुछ समय के लिए मर जाते हैं और फिर इस दुनिया में वापस आ जाते हैं। और वे हफ्तों और महीनों तक रोते रहते हैं क्योंकि इतनी खूबसूरत दुनिया देखने के बाद वे इस दुनिया में नहीं रहना चाहते। क्योंकि आंतरिक दुनिया, आध्यात्मिक स्तर, इतना परम सुखमय होता है कि सूक्ष्म स्तर जैसा निम्न स्तर भी हमें खुशी और स्वतंत्रता की इतनी असाधारण अनुभूति प्रदान करता है जिसका स्वाद हम इस संसार में कभी नहीं ले सकते - चाहे हम इसके लिए कितना भी पैसा खर्च करना चाहें या कितनी भी कठिन तपस्या करें या बुद्ध को कितने भी सैकड़ों बार नमन करें। यही कारण है कि प्राचीन काल से, कई लोग सुख-सुविधाएं, पद, धन-संपत्ति सहित सब कुछ त्याग कर वनों या हिमालय आदि में साधना करने चले जाते हैं, ताकि आध्यात्मिक ध्यान के माध्यम से प्राप्त इस प्रकार की आनंदपूर्ण अनुभूति का आनंद पाना जारी रख सकें। एक बार जब हम स्वर्ग के (आंतरिक स्वर्गीय) प्रकाश और भगवान या बुद्ध की शिक्षा को जान लेते हैं, तो हमें इस दुनिया में कोई और सांसारिक चीज नहीं चाहिए, भले ही हम अभी भी काम करना जारी रखते हैं और अपने आप को और अपने परिवार, अपने देश की मदद करते हैं। लेकिन इस दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं है जो उस खुशी की तुलना कर सके जो हमें स्वर्ग में अस्थायी प्रवास के दौरान, ध्यान करते समय, या शायद सोते समय मिलती है। कभी-कभी लोग स्वयं भी बहुत-बहुत सच्ची और गहरी प्रार्थना के दौरान या संकट के समय में इस परम सुख को प्राप्त कर सकते हैं, जब उनके पास कहीं और जाने के लिए कोई स्थान नहीं होता, या भरोसा करने के लिए कोई और नहीं होता; तब वे स्वयं को पूरी तरह भूल जाते हैं और स्वयं को ईश्वर या बुद्ध के हाथों में सौंप देते हैं, और यही वह समय होता है जब वे इस प्रकार के अल्पकालिक परम सुख का आनंद लेते हैं। लेकिन यदि हम इसका बार-बार या स्थायी रूप से आनंद लेना चाहते हैं, तो हमें यह जानना होगा कि चेतना के इस उच्चतर स्तर तक कैसे पहुंचा जाए, और तब हर दिन हमारे लिए निर्वाण और स्वर्ग हो सकता है। और फिर इस संसार का दुःख हमें छू नहीं सकेगा। बेशक, हम इस दुनिया में लोगों के दर्द और पीड़ा को महसूस करेंगे, और फिर हम मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे। पर इसका मतलब यह नहीं है कि हम स्वयं कष्ट झेलें। यही कारण है कि बुद्ध, भले ही वे एक राजकुमार थे और उनके पास बहुत सारी सुख-सुविधाएं और विलासिता थी, आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद, उन्होंने थोड़ी सी भी असुविधा महसूस किए बिना और बिना किसी खेद के एक भीख मांगने वाले भिक्षु का जीवन व्यतीत किया। Photo Caption: हम पर हमेशा नज़र रखी जाती है और हमें प्यार किया जाता है।