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पाँच नियम सरल नियम हैं जो नियम भी नहीं होने चाहिए हैं। यह एक मानक होना चाहिए, सभ्य मनुष्यों के जीने का, एक संत की तो बात ही नहीं करो, या एक अभ्यासी की या वैसा कुछ। उन्हे रखो। कैथोलिक धर्म या हिन्दू धर्म में, या जैन धर्म में, वे सारे नियम रखते हैं। उन सबके पास इस प्रकार के मूल अहिंसा होते हैं, दूसरों को कष्ट नहीं पहुंचाना।चोरी करना भी दूसरों को भिन्न तरीके से कष्ट देना होता है, क्योंकि अगर आप किसी के पैसे चोरी करते हो या वह जो किसी को चाहिए होता है, फिर आप उस व्यक्ति को दुखी करते हो। आप उसका जीवन सहज नहीं बनाते हो, और फिर उसे चिंता होती है और फिर वह अपने नित्या के काम में व्याकुल होती है या अपने काम की कार्यकुशलता में, जो कुछ भी वे करते हैं। तो, जब आप कुछ करते हो, दो बार सोचो, इसे करने से पहले, बस यही। बहुत ही सरल। जोकुछ भी आपका नहीं है, चाहे यह व्यर्थ है, नहीं लेना, बहुत ही सरल। क्या यह कठिन है ? (नहीं) नहीं! दशकों पहले ही कहा गया है।बुद्ध ने आनंदा को वह कहा था, “जब संसार में आप लोगों को समाधि विकसित करना सिखाते हो...” याद है ? क्योंकि आनंदा ने बुद्ध से पूछा, “भविष्य में मैं दूसरे प्राणियों की मद्द कैसे कर सकता हूँ, चाहे, मैं स्वयं भी बहुत ही उच्च विकसित नहीं हूँ। मैं नहीं हूँ, शायद अभी तक रक्षित नहीं हूँ, लेकिन मैं दूसरों की रक्षा करना चाहता हूँ। मैं कोशिश करना चाहता हूँ।” तो, बुद्ध ने उसे यह सब सिखाया था। तो, उसने कहना जारी रखा, “जब आप संसार के लोगों को सिखाना चाहते हो समाधि विकसित करना,” मतलब बुद्ध के जाने के बाद, वहाँ कोई भी नहीं है, फिर अगर आप दूसरों को सिखाना चाहते हो, फिर उन्हे यह सब सिखाना। ऊपर- लिखित सभी नियम, वचन, सिद्धान्त। और आगे, अगर वे समाधि विकसित करना चाहते हैं, उन्हे चोरी भी करना बंद करना होगा। कुछ भी चोरी नहीं करना। यह तीसरा है, स्पष्ट अटल, अटल नियम है। यह वास्तविक सत्य है; कुछ भी इसका स्थान नहीं ले सकता है। हत्या नहीं करना, कोई भी अनैतिक कामुक संबंध नहीं, चोरी नहीं करना।चाहे आप विवाहित हो, आपको बंद करना होगा। भारत में गुरुजन, अगर वे विवाहित भी हैं, उनमें से कई हैं, क्योंकि वे पहले ही विवाहित थे, एक गुरुजी बनने से पहले या बाद में भी, लेकिन उनके पास युगल पारस्परिक क्रिया वर्ष में केवल दो या तीन बार ही होटी थी, बस बच्चे बनाने के लिए, परिवार की परंपरा के लिए ही। इसलिए नहीं कि वे उसके बाद कामातुर थे । बस एक प्रकार का कर्तव्य।तो, ये ब्रह्मांड के अपरिवर्तनीय नियम हैं जिन्हे आपको रखना चाहिए मुक्त होने के लिए, बुद्ध की उपस्थिती के साथ या बिना। अब, “इसीलिए, आनंदा, अगर चैन समाधि को बनाने वाले, मतलब ध्यान करने वाले, “चोरी करना बंद नहीं करते हैं, वे होते हैं जैसे कोई जो पानी डालता हो एक रिसाव वाले कप में और उम्मीद करता है इसे भरने की।” मतलब व्यर्थ, व्यर्थ, आप अपना समय बर्बाद करते हो। अगर आप पानी डालते हो एक रिसाव वाले कप में, क्या कप में पानी रहेगा ? (नहीं) नहीं। इसलिए, अगर आप ये मूल नियम नहीं रखते हो, फिर फर्क नहीं पड़ता कि कितना लंबा ध्यान करते हो, यह रिसाव होता जाता है, चला जाता है, चला जाता है, चला जाता है माया की शक्ति के पास। माया इसे ले लेगी और उसका उपयोग करेगी आपको और दूसरों को भी हानि पहुंचाने के लिए। “वह जारी रह सकता है कई युगों तक क्योंकि मिट्टी के महीन कण होते हैं, लेकिन अंत में यह भरेंगे नहीं।” यह ऐसे है। अगर आप नियम नहीं रखते हो, अपनी समाधि को भूल जाओ, अपने ध्यान को भूल जाओ; आपके लिए व्यर्थ है। बुद्ध ने वह कहा है । मैं भी वही कहती हूँ।